प्रबोध साहित्य सन्मान 2019
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प्रबोध साहित्य
सन्मान 2019
प्रेस विज्ञप्तिPRESS RELEASE
वर्ष 2019-का प्रबोध साहित्य सन्मान: कवि-अनुवादक हरेकृष्ण
झा को
वर्ष 2019-के लिए
मैथिली भाषा और साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ‘प्रबोध साहित्य सन्मान’
वरिष्ठ मैथिली कवि-अनुवादक-चिन्तक श्री हरेकृष्ण झा को दिया जायगा । यह
निर्णय आज विख्यात भा-विज्ञानी, कवि-नाटककार और एमिटी विश्वविद्यालय के
चेयर-प्रोफेसर एवं कला संकाय के डीन प्रो: उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ की
अध्यक्षता में मैथिली के मूल तथा अनुवाद साहित्य में इनका आजीवन योगदान के आधार पर
लिया गया है । प्रतीक चिह्न और प्रशस्ति पत्र के साथ एक लाख रुपये की राशि का यह
पुरस्कार श्री हरेकृष्ण झा को रविवार, 24 फरबरी 2019-के दिन
पटना में प्रदान किया जाएगा । उल्लेखनीय है कि प्रति-वर्ष ‘प्रबोध साहित्य
सन्मान’ मैथिली आंदोलन के अग्रणी नेता,विशिष्ट
विद्वान् तथा संस्कृत-फारसी-पाली-मैथिली और हिन्दी के मूर्धण्य भाषा-शास्त्री एवं
कलकत्ता विश्वविद्यालय के भूतपूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष स्वर्गीय डॉ. प्रबोध
नारायण सिंह के सन्मान में स्वस्ति फाउंडेशन द्वारा २००४ ई. से प्रदान
किया जा रहा है ।
हरेकृष्ण
झामैथिलीऔर हिन्दी के चर्चित कवि और विचारक
रहे हैं।मानवीयसंवेदना और एक सभ्य समाज की तलाश में हरेकृष्ण जी अलग अलग समय में तकनीकीशिक्षा से लेकर अंग्रेजी सहित्य की पारम्परिक शिक्षा
लेने की ओर कदम तोबढ़ाया पर कुछ रास नहीं आया।बामपंथ की ओर भी कुछ रुझान रहा।इस लिए
अभियंत्रगणक का अध्ययन को उन्होंने बीच
में ही छोड़ दिया और मार्क्सवादी राजनीति में सक्रिय हो गए । 70 के दशक में नक्सली आन्दोलन की ओर आकृष्ट हो कर
अपनी औपचारिक शिक्षा छोड़ दिया था । पर मूल रूप
सेहरेकृष्ण जी मैथिली और हिन्दी में मानवतावादी कवि के रूप में उभर कर आये हैं।मिथिला
की सभ्यता और संस्कृति का उन्होने गहन अध्ययन किया है।पिछ्ले लगभग चालीस सालों से कविता लेखन के अलावा उन्होंने अनुवाद को अपने जीवनयापन
का साधन बनाया।विश्व के दर्जनों संस्थानों के लिये आप अनुवाद करते रहेहैं ।संकलित रूप से उनकी रचनाएँ ज्यादा नहीं
मिलती है, पर उनके सुपरिचित काव्य-संग्रह का नाम है
– ‘ऐना त नहिं जे’(2006)।इस के दस साल बाद इनके मैथिली अनुवादकी
पुस्तक प्रकाशित हुई है'ई थिक जीवन'।इस संग्रह में इन्होंने प्रसिद्धअंग्रेजी
कवि वाल्ट व्हिटमैन की कुछ चुनी हुई
कविताओं का अनुवाद किया है। साहित्य अकादमी के लिए इन्होंने ‘राजस्थानी साहित्य का
इतिहास’का मैथिली
अनुवाद किया है।अंग्रेजी से हिंदी में भी इनके कई महत्वपूर्ण अनुवाद प्रकाशित हुये
हैं – जिनमें ‘कसौटी’ में प्रकाशित रणधीर वर्मा का उत्तर-आधुनिकता पर दीर्घ निबंध
और पॉल फ्रेरे का आलेख आदि शामिल है; सहभागी विकास के सिद्धांतकार रोबर्ट
चैम्बर्स की किताब ‘रूरल अप्प्रैसल: रैपिड, रिलैक्स्ड एंड पार्टीसिपेटरी’ का अनुवाद ‘ग्रामीण
आकलन: तेज, सहज और सहभागी’ नाम से प्रक्सिस
द्वारा प्रकाशित हुई है। प्रख्यात इतिहास विशेषज्ञ डी डी कोसाम्बी की किताब ‘द एक्जेस्पेरेटिंग
एसेज’ का अनुवाद भी किया है। संगीत और चित्रकला में इनकी विशेष रूचि रही है।करीब दस साल तक
हरेकृष्ण जी ने जनपक्षीय सांस्कृतिक मंच
‘समय संकेत’ का संचालन किया है ।
हरेकृष्ण झाका जन्म 28 मार्च 1949 में कोइलख, दरभंगा
मेंहुआ थाऔर वे रघुनाथ टोला, अनीसाबाद, पटना में
रहते हैं।
प्रबंधन
न्यासी
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