मिथिला दर्शन समीपेषु

मिथिला दर्शन समीपेषु


आदरणीय संपादक जी,
आखर लेख मे अपने सिराउर सँ उत्पन्न सीताक विवाह राम संग होयबाक तिथि केँ विवाह पंचमी क रूपमे मनाओल जयबाक चर्च कएलहुँ अछि। जे समयिक आ प्रासंगिक अछि मात्र मिथिले लेल नहि, अपितु सम्पूर्ण भारत आ विश्व लेल सेहो।
लाल दास कृत रामायणक माध्यम सँ ई देखेबाक प्रयास भेल अछि जे शक्तिक साक्षात स्वरूपा सीता रामक सिर्फ अर्धांगिनिए टा नहि, रामक बल, धैर्य, साहसकेँ अक्षुण्ण रखबा लेल अप्पन स्वक त्याग करैवाली नारि छलीह संगहि हुनक आस्था, त्याग, मर्यादा ओ पुरुषार्थक रक्षार्थ सदैव तत्पर रहैवाली संगरक्षिणी सेहो छलीह। जे अप्पन चिंता एको-आधो घड़ी लेल नहि करय आ अप्पन सर्वस्व 'रामत्व' लेल त्यागि दिअय,ओकरा की कहबै? प्रायः शब्दक अकाल परि जायत! रामनाम सँ पूर्व सीताक
उच्चरणे पर्याप्त अछि सीताक महिमाक गुणगान करबा लए। लालदास जी ओहिना नै  सीताजीक महत्ता पर जोर दैत सीता केँ रामक शक्तिक रूपमे स्थापित करैत छथि। रामायण सँ जँ शक्तिक अपहरण कय लेल जाय, तँ रामायणक  मर्यादा आ आदर्श कहियो पूर्ण नहि भय सकत। आ जें शक्तिक हरण भेलै तेँ पुरुषार्थ पराक्रमी भेल आ अहंक सर्वनाश भेल।
आजुक समाजकेँ दुनू चीज चाही, शक्ति संग मर्यादा। नै तँ मौब लिंचिंग आ कि कोनो अप्रिय घटनाक जन्म हेबे करय।
           पटनाक कोनो गोष्ठीमे एक गोट स्थापित लेखक ओ कवि बाजल छलाह जे मिथिलाक लोक सीताक कष्ट आ दुःख देखि अप्पन बेटीक नाम 'सीता' नै राखय चाहैत अछि।
यद्यपि, कष्ट आ दुःख सँ केओ वंचित नै अछि।
सीताक अग्नि परीक्षा आ निर्वासन सँ लेखक दुखी हेताह। पुरुषवादी सत्ताक निर्णय सँ आहत  हेताह। स्त्रीक दासता ल' क' चिंतित सेहो हेताह। मुदा, ई सभ आजुक लोक आ समाजक सोच अछि, नै कि ओइ दिनक। मर्यादाक रक्षा हेतु अप्पन सर्वस्व त्यागै वाली सीता आ राम केँ  दुःख भेलनि आ कि सुख, एकर अनुमान केनाइ
हमरा सभ लेल असम्भव अछि। भगत सिंह, रामकृष्ण, विवेकानंद, सबरी, झांसीक रानी, ईशा मसीह, कबीर, गुरु नानक, सुदामा आदिकेँ देखि हमरा सभ कहि सकैत छियै जे ओ लोकनि बड्ड कष्ट सहलनि, मुदा जाहि आनंदक प्राप्ति हुनका लोकनि केँ भेलनि, तकर कल्पनो हम अहाँ नहि कय सकैत छी। तँ,जे सत्य होइछ ओकरा बेर-बेर अग्नि-परीक्षा देबय पड़ैत छैक। जेना सोना। सोना सत्य अछि। सीता सत्य छलीह, प्रकृति-शक्ति छलीह आ तेँ हुनक नाम शाश्वत अछि। तेँ, नाम रखबा मे कोनो भय आ हर्ज नहि। ईशा, भगत, मीरा, रामकृष्ण नाम सँ दुःख दूर होइछ। जेना प्रसव पीड़ाक बाद जननी केँ आनंदे आंनन्द छैक।
नारी स्वतन्त्रताक आंदोलन केनिहारिकेँ सीताक वैचारिक आ आध्यात्मिक स्वतन्त्रता सँ किछुओ सबक लेबाक चाही, नै कि कपड़ा आ मनमानी करबाक आजादी लेल नारी मुक्तिक नारा मजगूत करक चाही। पुरुषोकेँ रामक मर्यादा, पुरुषार्थ ओ त्यागसँ फेर स' सीख लेबाक आवश्यकता छैक। विवाह पंचमीक यैह सार्थकता अछि।
मनमोहना रे क स्वागत करैत दू गोट व्यंग्य रचना लेल धन्यवाद्। शरदिन्दु जी केँ  बहुत दिनक बाद देखल। रवींद्र जी समया मे बैसल-बैसल हमरा यूरोप घुमा देलनि, ताहि लेल अपने संग हुनको धन्यवाद्। अर्पणा झाक रासनचौकी सुनबा मे नीक लागल। मुदा सुनय तँ पड़त डीजेए ने!

- वीरेन्द्र नारायण झा
  समया, झंझारपुर
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